Wednesday 27 December 2017

अब लौट भी आओ न ऐ मेरे हमदम

बहुत हुआ रूठने मनाने का खेल
अब लौट भी आओ न ऐ मेरे हमदम
कब से बैठी हूँ तुम्हारे इंतजार में
हर गली हर रास्ता मैंने तुम्हारे लिए सजाया है
पता नहीं किस गली किस रास्ते से गुजरो तुम
अब तुम्हारे इन्तजार में मेरी आँखे थक चुकी हैं
तुम्हारी वाट जोतते-जोतते ऐ मेरे सनम
कब तक जिऊं तुम्हारी यादों के साये के साथ
अब बस बहुत हुआ लौट भी आओ न
कब तक रूठे रहोगे हमसे यूँ मेरे सनम

शीरीं मंसूरी "तस्कीन"

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