Tuesday 30 May 2017

ज़िन्दगी की हकीक़त थी

कुछ ज़िन्दगी की हकीक़त थी
पर मैंने उसे स्वीकार नहीं किया
बचपन में मैं सोचती थी कि

ये  भेद भाव के रस्मो रिवाज कुछ नहीं होते
दिन बीतते गए सच सामने आता गया
फिर भी मैं जानकर अंजान रही

सच सामने था पर हमेशा की तरह उसे नकारती रही
पर सच से मैं कब तक पीछे भागती
उसे तो एक न एक दिन सामने आना था

फिर एक दिन खुद अपनी लड़की होने की इस कमी को स्वीकारा
जब सब मेरे साथ मेरी आँखों के सामने हुआ
लोगों ने सच ही कहा है कि लड़कियां पराया धन होती हैं

अपनी जान को निछावर करने के बाद भी
उन्हें हमेशा यही सुनने को मिलता है

कि लड़कियां पराया धन हैं पराया धन 


शीरीं मंसूरी 'तस्कीन' 

No comments:

Post a Comment